महाभारत का रहस्यमय योद्धा बर्बरीक, जिन्हें खाटू श्याम के नाम से जाना जाता है,जिनका महाभारत में कहीं नाम दिखाई नहीं देता वे महाभारत के एक महान योद्धा थे। वे घटोत्कच और अहिलावती (मोरवी) के सबसे बड़े पुत्र थे। उनके अन्य भाई मेघवर्ण और अंजनपर्व का उल्लेख भी महाभारत में दिया गया है।
पहले जानते हे क्यू बर्बरीक का नाम पड़ा ‘खाटू श्याम’ और क्या है इनकी कथा !
इतिहास मे देखा जाये तो श्री खाटू श्यामज़ी का एक सदियों पुराना मंदिर हे |श्री खाटूश्याम जी को भगवान कृष्ण का कलयुगी अवतार माना जाता है।यह मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थापित है। जहां दूर-दूर से लोग उनके दर्शन करने आते हैं। धार्मिक मान्यता है कि सच्चे मन से जो साधक बाबा के दरबार में अपनी मुराद मांगता है। उसकी मुराद अवश्य पूरी होती है।आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा।
कथा :
सनातन शास्त्रों में निहित है कि महाभारत युद्ध के दौरान भीम के पौत्र बर्बरीक ने कौरवों का साथ दिया। आसान शब्दों में कहें तो बर्बरीक ने कौरवों की सहायता कर पांडवों से युद्ध करने की बात की। यह सुन भगवान श्रीकृष्ण एक पल के लिए सोच में पड़ गए। उन्हें लगा कि अगर महान योद्धा बर्बरीक, कौरवों का साथ देंगे, तो पांडवों के लिए जीत मुश्किल हो सकती है। अतः किसी न किसी प्रकार से बर्बरीक को ऐसा करने से रोकना पड़ेगा।

तत्कालीन समय में बर्बरीक सबसे बड़े धनुर्धर थे। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान श्रीराम के बाद सबसे बड़े धनुर्धर में बर्बरीक का नाम आता था। यह सोच प्रातः काल में भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण वेश में दान लेने बर्बरीक के पास जा पहुंचें। बर्बरीक ने ब्राह्मण का खूब आदर सत्कार किया। इसके पश्चात, आने का औचित्य पूछा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा-दान हेतु आपके पास आया हूं। आपकी ख्याति न केवल पृथ्वी लोक में, बल्कि अन्य लोकों में भी है। उस समय बर्बरीक ने दान मांगने को कहा।
भगवान श्री कृष्ण धीरे से बोले-अगर मैंने कुछ मांग लिया और आप न दें पाएं, तो ? यह सुन बर्बरीक ने कहा-आप दान मांगे। आप यहां से खाली हाथ नहीं लौटेंगे। भगवान श्रीकृष्ण इसी वक्त के इंतजार में थे। उसी समय भगवान ने बर्बरीक से उनका शीश मांग लिया। बर्बरीक एक पल के लिए सहम गए, लेकिन धर्म कर्तव्य का पालन कर तत्काल अपना शीश प्रभु को समर्पित कर गए। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को खाटू श्याम नाम दिया और कहा-कलयुग में आप मेरे नाम से पूजे जाएंगे। कहा जाता है कि जिस जगह पर बर्बरीक का शीश रखा गया। उस जगह पर आज भी खाटू श्याम जी विराजते हैं। कालांतर से खाटू श्याम जी की पूजा की जाती है।